देखता हूँ, आंकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
तुम ये रंगत कहाँ तक ही ले जाओगे?
बेचता हूँ, ठैरता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी शोहरत को कब तक यूँ सेहलाओगे?
तोलता हूँ, मोलता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी दौलत से खुद को क्या नेहलाओगे?
ताकता हूँ, घूरता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी हरकत से तुम बाज़ कब आओगे?
रेख़्ता हूँ, फेकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
मेरी मोहलत से कब तक यूँ घबराओगे?
कोसता हूँ, रोकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी सूरत से कब तक यूँ शर्माओगे?
सेंधता हूँ, खोलता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
ऐसी लानत से बचकर कहाँ जाओगे?
तानता हूँ, ओढ़ता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
ऐसी फुर्सत के पल तुम कहाँ पाओगे?
मांजता हूँ, रेतता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
क्या वो जन्नत उठाकर यहाँ लाओगे?
छीनता हूँ, लूटता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अब ये बरकत के गाने कहाँ गाओगे?
बेलता हूँ, सेकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
इसकी क़ीमत मुझे तुम क्या दिलवाओगे?
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