Saturday, February 24, 2024

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है 
कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको 
जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ   
क्या ख़बर कौन से पल ये नज़ारा छिन जाए 

वो बिछड़ते नहीं तो आज ये दिन ना मिलता 
उनकी यादों के इस सुहाने पल को जीने का 
वो बिछड़ते नहीं तो ख़ाब में आते भी नहीं 
चलो अच्छा ही हुआ वो बिछड़ गए मुझसे 

कौन से तीर मार डाले मिल के लोगों ने 
मैं तो खुश हूँ बिछड़ के भी आज दिलबर से 
कभी तो दिल में ये आता है के बुला लूं उन्हें  
फिर ख्यालों में ही उनके मैं डूब जाता हूँ 

क्या ये होगा भी कभी वो ही चले आएंगे 
दर पे दस्तक सी करेंगे या चले जाएंगे 
जी मचलता है यही सोचकर जो आएं वो  
क्या कोई बात बची भी है उन से कहने को 

उनको शायद मेरे एहसास का पता भी नहीं 
वो जो ख़ुश हैं तो मेरा दिल ख़ुशी में डूबा है 
मैंने बरसों के बाद जाने क्यों दराज़ों से 
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है

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