तेरी रुसवाई में बेखुद को मनाते देखा
और दुनिया को परेशान-सताते देखा
मैंने नाहक़ ही बेदार सी बातें कहकर
खुद को उलझन ही उलझन में फ़ँसाते देखा
ख़ुद-ब-ख़ुद, कुछ तो गिरा, हो-न-हो, तुम आओगे
ये वहम है तो मगर, ख़ुद को बताते देखा ... खुद को उलझन ...
अब निखर जाएंगे दिन, बात भी बन जायेगी
क़ाफ़िरों में हूँ मगर, हाथ उठाके देखा ... खुद को उलझन ...
नींद आ जाएगी ख़ाबों में वो ही आएंगे
ख़ाब में ख़ुद को यूं ही रात बिताते देखा ... खुद को उलझन ...
मेरे यारों ने मुझे बात बनाते देखा ... खुद को उलझन ...
ये राज़ है, के मरते हो, मुझपे बे-इंतेहा
इस लतीफे से तुझे सबको हंसाते देखा ... खुद को उलझन ...
तेरी रुसवाई में बेखुद को मनाते देखा
और दुनिया को परेशान-सताते देखा