उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है
कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको
जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ
क्या ख़बर कौन से पल ये नज़ारा छिन जाए
This page contains poetries and ghazals created by me at different times in my life.
Saturday, February 24, 2024
लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )
सुकून
वो बोलते हैं कई बार परेशां होकर
ज़िन्दगी में कभी कभी सुकून मिलता है
मैं सोचता हूँ कभी दिल से मेरे इस दिल को
सुकून ना मिले तभी सुकून मिलता है
सब यहाँ दौड़ में होड़ों में घिरे रहते हैं
ढूंढते हैं कहाँ कहाँ सुकून मिलता है
कोई डगर नहीं मिली न ठिकाना के जहां
लोग कहते हों के यहाँ सुकून मिलता है
मुतालबा सुकून का तो इस क़दर है बढ़ा
के दस्तियादियों के नाम ख़ून मिलता है
सुकून लफ्ज़ बचा है यही ग़नीमत है
सुकून को भी तो कहाँ सुकून मिलता है
मुझसे कहते हो मगर कैसा है ये तेरा शहर
सुकून ढूंढता हुआ जूनून मिलता है
झाँक कर देख लें ज़रा ये गरेबाँ में कभी
कोई नहीं वहां जहाँ सुकून मिलता है
लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ क्या ख़बर कौन से प...
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