सुनता हूँ तुझसे दूर हूँ बोहत
हालातों से मजबूर हूँ बोहत
ज़माने को बड़ी फ़िक्र है मेरी
कहते जो हैं मग़रूर हूँ बोहत
तेरे बारे में सुनता रहा
इनके ख़ाबों को बुनता रहा
बस तेरी मेरी दास्ताँ से ही
इन गलियों में मशहूर हूँ बोहत
तुम जाने कब ना जाने कहाँ
मेरी दुनिया कहकर अलविदा
मुझको भी अपने संग ले गए
खुद मैं खुद से अब दूर हूँ बोहत