Tuesday, March 22, 2022

ज़िंदगी तो इक सफ़र है

ज़िंदगी तो इक सफ़र है हर सफ़र है मुख़्तसर 

ना करो शिक़वा शिक़ायत हम सभी हैं हमसफ़र


हर किसी की ज़िंदगी में हो भले इक सी डगर

हर सफ़र की हर डगर में मुख़्तलिफ़ सा है असर


वो नज़र भी क्या नज़र है जो मिलाए ना नज़र

वो क़दम भी क्या क़दम हैं जो बढ़ाये ना क़दम 

किसको सिखलाने चले हो कौन है मुजरिम तेरा 

खुद को आइना दिखा ले खुद से हो जा हम-नज़र


लोच सा रिश्तों में रखना कर अहम को अलविदा

बांध कर रिश्तों को रखना न रहे कोई कसर

कह जो तेरे दिल में है दिल को छुपाना ना कभी

क्या पता किस पल में खो जायेगा तेरा हमसफ़र


तल्ख़ियाँ उठती हैं बेशक उठ के फिर जाती भी हैं

रोक लो ख़ुद को कभी जब तल्ख़ियों का हो असर

ना करो लहरों से बातें जब भी हो दिल में भंवर

वरना पछताना पड़ेगा तुमको गोया उम्र भर 


ज़िंदगी में हर किसी के नज़रिए की बात कर

हर कहानी सीख ये देती है के बस प्यार कर

यूं तो हर जज़्बा हर एक हरकत है खुद में फ़लसफ़ा 

तजरुबा जो मेरा पूछो प्यार ही है कारगर


हर बेहेर की ज़िन्दगी है सोचने की मोहलतें 

हर ज़हन की ज़िन्दगी है तजरुबों की दौलतें 

सुन के चंद शेरों को वाहवाई मिली तो क्या विवेक 

दिल धड़कता है तो समझो बन गई अपनी ग़ज़ल 


ज़िंदगी तो इक सफ़र है हर सफ़र है मुख़्तसर 

ना करो शिक़वा शिक़ायत हम सभी हैं हमसफ़र

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