मिल्ने की ख्वाहिशों में ज़माने बिता दिये
और जब वो मिल गया तो ज़माने बिता दिये
छोटी सी बात कहने की इक आरज़ू मेरी
छोटी सी बात कहने में ज़माने बिता दिये
सांसें तो चल रही थी मगर जी नहीं सके
मरने की ख्वाहिशों में ज़माने बिता दिये
है प्यार क्या खबर है ज़माने को आजकल
जिसकी थी आरज़ू वो ज़माने बिता दिये
बच्पन की याद को किया मासूम दिल ने फिर
बच्पन की कोशिशों में ज़माने बिता दिये
पाने की आरज़ू थी जिसको ऎ ज़िन्दगी
उसकी ही आरज़ू में ज़माने बिता दिये
बारिश की आस दिल को तसल्ली दिला गई
बादल को देख कर ही ज़माने बिता दिये
कहते हैं प्यार में विवेक रुसवाईयां भी हैं
रुसवाई के सबब में ज़माने बिता दिये
This page contains poetries and ghazals created by me at different times in my life.
Wednesday, October 25, 2006
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लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )
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