Monday, February 19, 2024

ताहिर - Crime Tak

जुर्म कितने ही मैं बताऊँ तुम्हें 
कोई नहीं न जो बिका होगा 
कोई रिश्ते नहीं बचे ताहिर 
जुर्म जिसमें न हो सका होगा 

कौन टिकता है उम्र भर के लिए 
न वो ज़मी न वो मकां होगा 
इतना दुखता है छोड़ दे उसको 
वो भी शायद बिखर चुका होगा 

प्यार की बात भी फरेबी थी 
सबने सोचा के वो थका होगा 
उसने शरबत में तल्ख़ घोली थी 
क्या पता था के यूँ दग़ा होगा 


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ये शेर मैंने शम्स ताहिर खान जी की खिदमत में लिखे हैं |
अगर अच्छा लगे तो इल्तेजा है इसे पढ़ कर मुझे नवाज़ दें। 
ज़र्रा नवाज़ी होगी। 

चाहत

कुछ इस तरह से उन्हें चाहिए
के ज़मीं आसमां को चाहिए
प्यार की शिद्दतें भी ऐसी हों (शिद्दत = intensity)
के जुबां बे-जुबां को चाहिए

किसी तारीफ की गरज़ तो नहीं
बस के तार्रुफ़ तो इक कराइये (तार्रुफ़ = introduction)
कोई पुकारे ना पुकारे उन्हें
नाम हर इक निशां को चाहिए 

हों इशारों से यार से बातें 
गीत एक ज़ाफ़रां सा गाइये (ज़ाफ़रां = saffron, केसर)
बात समझाना इक बहाना हो 
काम हर तर्जुमां को चाहिए (तर्जुमा = work of translation)

यूं ही होती हैं बात ग़ैरों से 
प्यार से बात कम ही होती है 
जब मुसाफ़िर वो बन के मिलते हैं 
दोस्त हर हम-जुबां को चाहिए (हम-जुबां = someone who speaks the same language)

चाहिए चाहतों के अफ़साने (अफ़साना = story)
मर्ज़ लेकिन जहाँ में और भी हैं (मर्ज़ = ailment, रोग)
कोई गलियों में कहता फिरता है 
एक छत बे-मकां को चाहिए (बे-मकां = homeless)

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

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