जुर्म कितने ही मैं बताऊँ तुम्हें
कोई नहीं न जो बिका होगा
कोई रिश्ते नहीं बचे ताहिर
जुर्म जिसमें न हो सका होगा
कौन टिकता है उम्र भर के लिए
न वो ज़मी न वो मकां होगा
इतना दुखता है छोड़ दे उसको
वो भी शायद बिखर चुका होगा
प्यार की बात भी फरेबी थी
सबने सोचा के वो थका होगा
उसने शरबत में तल्ख़ घोली थी
क्या पता था के यूँ दग़ा होगा
======================================
ये शेर मैंने शम्स ताहिर खान जी की खिदमत में लिखे हैं |
अगर अच्छा लगे तो इल्तेजा है इसे पढ़ कर मुझे नवाज़ दें।
ज़र्रा नवाज़ी होगी।