Thursday, January 11, 2024

इन्सान

इन्सान... ज़ेहन से जो आवारा

ये खुद भी है कठपुतली

खुद इसे क्या पता


बेजान जिस्म में जो है जान

कहां से आती है

खुद इसे क्या पता


जाने क्या ढूंढता है दिल

किसकी ख्वाहिश में है शामिल

किन तलाशों में गुम है ये

खुद इसे क्या पता


ख़ुशी किसमें ये ढूंढे है

सुकूं किसको ये समझे है

कहीं मिलते भी हैं क्या ये

खुद इसे क्या पता


सांस आती और जाती है

जाने क्या कुछ करवाती है

जिंदगी किसको कहते हैं

खुद इसे क्या पता


ख़ुदा का नाम देता है

ख़ुदा का नाम लेता है

मगर खुद में क्या रखा है

ये क्या पता


नज़र लग जाती है

नज़र से बच के ज़रा हां!! नज़र लग जाती है

कोई बेहद सी हुई बात

जब नज़र आती है


तेरे आग़ोश में आकार

और कुछ देर बहला कर

तुझको बेहोश कहला कर

वो सरक जाती है


नज़र से बच के ज़रा ...... 


कोई हमदम नहीं तो क्या

कोई मेहरम नहीं तो क्या

सांस ज़िंदा तुझे रखने 

तो चली आती है


नज़र से बच के ज़रा ...... 


कुछ यहां छुप नहीं सकता

तू छुपा कुछ नहीं सकता

मुश्क सौ तालों में तो क्या

वो महक जाती है

नज़र से बच के ज़रा ...... 


मैंने देखे हैं ऐसे दिल

लगते हमदर्द हैं क़ातिल

जो नज़र से लगा लें तो / (अक़्स गर देख ले उनकी)

नज़र लग जाती है - 3


नज़र से बच के ज़रा हां। … नज़र लग जाती है


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