उन लिफाफों में कैसा वो मजमून था
बात ही बात में हमसे खुलने लगे
This page contains poetries and ghazals created by me at different times in my life.
देखता हूँ, आंकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
तुम ये रंगत कहाँ तक ही ले जाओगे?
बेचता हूँ, ठैरता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी शोहरत को कब तक यूँ सेहलाओगे?
तोलता हूँ, मोलता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी दौलत से खुद को क्या नेहलाओगे?
ताकता हूँ, घूरता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी हरकत से तुम बाज़ कब आओगे?
रेख़्ता हूँ, फेकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
मेरी मोहलत से कब तक यूँ घबराओगे?
कोसता हूँ, रोकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अपनी सूरत से कब तक यूँ शर्माओगे?
सेंधता हूँ, खोलता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
ऐसी लानत से बचकर कहाँ जाओगे?
तानता हूँ, ओढ़ता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
ऐसी फुर्सत के पल तुम कहाँ पाओगे?
मांजता हूँ, रेतता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
क्या वो जन्नत उठाकर यहाँ लाओगे?
छीनता हूँ, लूटता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
अब ये बरकत के गाने कहाँ गाओगे?
बेलता हूँ, सेकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं
इसकी क़ीमत मुझे तुम क्या दिलवाओगे?
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ क्या ख़बर कौन से प...