अंधेरों में खड़े हो कब कदम अपने बढ़ाओगे
तरस खाओ के कितने ज़ुल्म अब तुम खुद पे ढ़ाओगे
अरे लोगों का क्या है कह देंगे जो जी में आएगा
तुझे ताक़त मिली है ख़ुद की क़िस्मत ख़ुद बनाओगे
ज़माने से डरोगे क्या कहेंगे लोग सोचोगे
निकल जाएगा हाथों से समय तो खंबे नोचोगे
करम तो कर ज़रा अपने भरोसा ख़ुद पे भी रख ले
कहीं मिलती है क्या क़िस्मत कहाँ इसको ख़रीदोगे
कहीं से रौशनी आएगी तुझको हौसला देगी
के दिल तू थाम के रखना तुझे वो फैसला देगी
तू ख़ाबों में रहेगा राह उसकी देखता होगा
तेरा ये वक़्त हीरे सा भी कौड़ी में गवाओगे