Tuesday, February 20, 2024

भरोसा

अंधेरों में खड़े हो कब कदम अपने बढ़ाओगे 
तरस खाओ के कितने ज़ुल्म अब तुम खुद पे ढ़ाओगे 
अरे लोगों का क्या है कह देंगे जो जी में आएगा 
तुझे ताक़त मिली है ख़ुद की क़िस्मत ख़ुद बनाओगे 

ज़माने से डरोगे क्या कहेंगे लोग सोचोगे 
निकल जाएगा हाथों से समय तो खंबे नोचोगे 
करम तो कर ज़रा अपने भरोसा ख़ुद पे भी रख ले 
कहीं मिलती है क्या क़िस्मत कहाँ इसको ख़रीदोगे 

कहीं से रौशनी आएगी तुझको हौसला देगी 
के दिल तू थाम के रखना तुझे वो फैसला देगी 
तू ख़ाबों में रहेगा राह उसकी देखता होगा 
तेरा ये वक़्त हीरे सा भी कौड़ी में गवाओगे 

गरज़ क्या है

मोहब्बत चीज़ क्या है 
और ये करने की गरज़ क्या है 
पूछते हैं हमें जीते जी 
मरने की गरज़ क्या है?

हम उनको बोलते हैं 
बर्फ से पानी निकलता है 
अगर पानी से जीना है 
तो झरने की गरज़ क्या है?

हमें मरना तो है इक दिन 
ये सच है और मुनासिब है 
तुझे गाड़ी गुजरने पे 
ठहरने की गरज़ क्या है?

कोई बैठा है तेरे घर 
तुझे वो याद करता है 
अकेला तू वो तनहा है 
तो डरने की गरज़ क्या है?

ये चुप्पी बोलती है साफ़ 
बातें ये बराबर हैं 
मेरी बातें जो सच्ची हैं 
तो लड़ने की गरज़ क्या है?

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है  कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको  जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ    क्या ख़बर कौन से प...