Thursday, November 03, 2022

क्या पता उनको

अब तो यादों में खाब सीते हैं क्या पता उनको कैसे जीते हैं

ये पता था के वो ना आयेंगे

इंतेज़ार फिर भी करते जीते हैं 


रात की बात क्या बताऊँ तुम्हें 

बेकरारी में दिन भी बीते हैं 


सब्र की हद तो कब की लाँघ चुके

कहते हैं लम्हें चंद बीते हैं 


क्या वो कहते हैं इसको तन्हाई 

भीड़ में ग़म के आँसू पीते हैं 


अब तो यादों में खाब सीते हैं

क्या पता उनको कैसे जीते हैं


लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है  कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको  जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ    क्या ख़बर कौन से प...