Monday, February 12, 2024

वस्ल

मेरे नसीब ने यूँ क़र्ज़ मिलाये होंगे 
मौसम-ए-वस्ल तभी वक़्त पे आये होंगे
             ...... (मौसम-ए-वस्ल = जुदाई का मौसम)
मैं तो अब भूल चुका भूल चुका हूँ शायद 
तेरे एहसास ने ये दर्द संभाले होंगे 

तेरी यादों में मैंने आसमाँ से बातें की 
तेरे तो दिन थे मगर अपनी मैंने रातें की
देख गिन रखे हैं फलक पे बता देता हूँ
रात से सुबह तलक कितने सितारे होंगे 

इक दफा झूठ ही कह देते कि मैं ग़ैर नहीं 
प्यार अब भी है तुझे मुझसे कोई बैर नहीं 
किया हलाल सर-ए-आम किसी के दिल को 
तू बता दे के ऐसे कितने नज़ारे होंगे 


शराब

मैं तो पीता हूँ आब जीने को
और जीता शराब पीने को
बोतलें जब मुझे पी लेती हैं
शक्ल देता हूँ मैं नगीने को 

भीड़ इतनी भी ना करो मिलकर 
सांस थोड़ी मुझे भी, जीने को

जब तलक मौत ख़ुद नहीं आती 
किसने देखा है ख़ुद सक़ीने को ...... (सक़ीना = शांति)

वो तो कहता है तू ज़हीन कहाँ ...... (ज़हीन = प्रतिभावान)
कोई समझाए इस कमीने को 😁

मैं तो पीता हूँ आब जीने को
और जीता शराब पीने को
बोतलें जब मुझे पी लेती हैं
शक्ल देता हूँ मैं नगीने को 

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है  कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको  जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ    क्या ख़बर कौन से प...