मेरे नसीब ने यूँ क़र्ज़ मिलाये होंगे
मौसम-ए-वस्ल तभी वक़्त पे आये होंगे
...... (मौसम-ए-वस्ल = जुदाई का मौसम)
मैं तो अब भूल चुका भूल चुका हूँ शायद
तेरे एहसास ने ये दर्द संभाले होंगे
तेरी यादों में मैंने आसमाँ से बातें की
तेरे तो दिन थे मगर अपनी मैंने रातें की
देख गिन रखे हैं फलक पे बता देता हूँ
रात से सुबह तलक कितने सितारे होंगे
इक दफा झूठ ही कह देते कि मैं ग़ैर नहीं
प्यार अब भी है तुझे मुझसे कोई बैर नहीं
किया हलाल सर-ए-आम किसी के दिल को
तू बता दे के ऐसे कितने नज़ारे होंगे