क्या पता रात के कब अंधेरे हुए
याद आते हैं तेरे वो वादे किये
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
इन दिनों बारिशों का ज़माना नहीं
कब बरस जाएँ लेकिन ठिकाना नहीं
ग़म के बादल दिहाड़े घनेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
कैसा मासूम था किसको मालूम था
उन लिफाफों में कैसा वो मजमून था
उन लिफाफों में कैसा वो मजमून था
बस बताने की ख़ातिर बसेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
हमसे मिलने लगे तुम तो खिलने लगे
बात ही बात में हमसे खुलने लगे
बात ही बात में हमसे खुलने लगे
क्या बताएं के कैसे लुटेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
हाँ रहा मैं तेरे आसतीनों में भी
ग़म के दिन और सालों महीनों में भी
सांप गर मैं हुआ तुम संपेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
फिर कहानी वही और रवानी वही
तुझसे रुसवाइयों से वीरानी वही
जाने कितने ही जन्मों के फेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
क्या सुनें ना सुनें और कहें ना कहें
और कितने बहाने तेरे हम सहें
अब तो ख़ामोशियाँ ही हैं घेरे हुए
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए
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