ज़िंदगी तो इक सफ़र है हर सफ़र है मुख़्तसर
ना करो शिक़वा शिक़ायत हम सभी हैं हमसफ़र
हर किसी की ज़िंदगी में हो भले इक सी डगर
हर सफ़र की हर डगर में मुख़्तलिफ़ सा है असर
वो नज़र भी क्या नज़र है जो मिलाए ना नज़र
वो क़दम भी क्या क़दम हैं जो बढ़ाये ना क़दम
किसको सिखलाने चले हो कौन है मुजरिम तेरा
खुद को आइना दिखा ले खुद से हो जा हम-नज़र
लोच सा रिश्तों में रखना कर अहम को अलविदा
बांध कर रिश्तों को रखना न रहे कोई कसर
कह जो तेरे दिल में है दिल को छुपाना ना कभी
क्या पता किस पल में खो जायेगा तेरा हमसफ़र
तल्ख़ियाँ उठती हैं बेशक उठ के फिर जाती भी हैं
रोक लो ख़ुद को कभी जब तल्ख़ियों का हो असर
ना करो लहरों से बातें जब भी हो दिल में भंवर
वरना पछताना पड़ेगा तुमको गोया उम्र भर
ज़िंदगी में हर किसी के नज़रिए की बात कर
हर कहानी सीख ये देती है के बस प्यार कर
यूं तो हर जज़्बा हर एक हरकत है खुद में फ़लसफ़ा
तजरुबा जो मेरा पूछो प्यार ही है कारगर
हर बेहेर की ज़िन्दगी है सोचने की मोहलतें
हर ज़हन की ज़िन्दगी है तजरुबों की दौलतें
सुन के चंद शेरों को वाहवाई मिली तो क्या विवेक
दिल धड़कता है तो समझो बन गई अपनी ग़ज़ल
ज़िंदगी तो इक सफ़र है हर सफ़र है मुख़्तसर
ना करो शिक़वा शिक़ायत हम सभी हैं हमसफ़र
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