Wednesday, February 07, 2024

कहानी

इक कहानी थी 
इक फ़साना था 
कुछ हक़ीक़त थी 
कुछ निभाना था 

हाथों से खत लिखते थे तब 
वो भी क्या ज़माना था 
दूर कहीं यादों की गली में 
कोई तेरा दीवाना था 

नदी किनारे बैठ के तुमको 
नग़मा ये सुनाना था 
धड़कन ये थमती ही नहीं है 
आँखों से ये बताना था 

एक छतरी थी वो भी टूटी 
उसका तो बस बहाना था 
मुझको सावन की बारिश में 
तेरे संग नहाना था 

प्यार का वादा करते थे तुम 
देर से मिलने आना था 
देर से आकर जल्दी जाना 
ऐसे मुझको सताना था 

इक कहानी थी 
इक फ़साना था 
कुछ हक़ीक़त थी 
कुछ निभाना था 

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