कोई ख़याल में आता है कहीं तुम तो नहीं
मेरा दिल फ़र्ज़ बनाता है कहीं तुम तो नहीं
किसी तनहा सी पड़ी चीज़ के नज़दीक़ मुझे
कोई अक्सर ही बुलाता है कहीं तुम तो नहीं
बात कोई भी नहीं ऐसी जो घबराना पड़े
दिल की धड़्कन जो बढा़ता है कहीं तुम तो नहीं
कभी-कभी ख़याल में कुछ नहीं होता
फिर ख़यालों में जो आता है कहीं तुम तो नहीं
मैं तो अक्सर्हां फ़लक़ से सवाल करता हूं
वो जो तारा सा बुझाता है कहीं तुम तो नहीं
तुम नहीं हो; तुम हो; तुम नहीं शायद
मेरा दिल जिसको चाहता है कहीं तुम तो नहीं
This page contains poetries and ghazals created by me at different times in my life.
Tuesday, June 05, 2007
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लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ क्या ख़बर कौन से प...
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कहीं तो ले चलो ख़याल मेरे कोई न ले जहां बयान मेरे ऐसा भी तो कोई मंज़र हो जवाब उनके हों सवाल मेरे किन चराग़ों की बात करते हो ये नहीं ये नही...