Tuesday, June 05, 2007

कहीं तुम तो नहीं

कोई ख़याल में आता है कहीं तुम तो नहीं
मेरा दिल फ़र्ज़ बनाता है कहीं तुम तो नहीं
किसी तनहा सी पड़ी चीज़ के नज़दीक़ मुझे
कोई अक्सर ही बुलाता है कहीं तुम तो नहीं

बात कोई भी नहीं ऐसी जो घबराना पड़े
दिल की धड़्कन जो बढा़ता है कहीं तुम तो नहीं

कभी-कभी ख़याल में कुछ नहीं होता
फिर ख़यालों में जो आता है कहीं तुम तो नहीं

मैं तो अक्सर्हां फ़लक़ से सवाल करता हूं
वो जो तारा सा बुझाता है कहीं तुम तो नहीं

तुम नहीं हो; तुम हो; तुम नहीं शायद 
मेरा दिल जिसको चाहता है कहीं तुम तो नहीं

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