Wednesday, June 18, 2014

वजह और भी है | Vajah aur bhi hai

ख्वाहिशें और भी हैं दिल पे असर और भी है
मुझपे तू एक ना मरने की वजह और भी है

 वो जो करते हैं बयाँ वजह बात करने की
दर असल बात ये करने की वजह और भी है

 पी चुके जाम सभी निभ भी चुकी रुसवाई
मान भी लो कहीं मिलने की वजह और भी है

जीने वालों ने मुझे घेर के पूछे थे सवाल
मरने वाले तेरे मरने की वजह और भी है

शाख पर पत्ते हैं पत्तों से लगी हैं कलियाँ
फूल के आज ही खिलने की वजह और भी है

वो जो आते थे यहाँ उनसे वजह मिलती थी
आज लेकिन मेरे पीने की वजह और भी है

 हम उन्हें भूल गए भूल गए भूल गए
ज़ख्म ताज़ा हुआ छिलने की वजह और भी है

 अब तो मर जाए हमें ऐसी दुआ मिलती है
हम ये कहते हैं के जीने की वजह और भी है

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