तू बता कैसे मैं उस ख़त में ये तुझे लिखता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता
मैं किस तरह किसी तनहा की अब तलाश करुँ
मुझको तन्हाई में तनहा कोई नहीं दीखता
तलाशता हूँ मुद्दतो से इस हथेली पे
तू लकीरों में अगर है तो क्यूँ नहीं दीखता
तू बेवफा भी अगर है तो कोई रंज नहीं
मैं ये समझूंगा तू मेरा कभी सनम इक था
मैं सोचता हूँ वास्ता अगर नहीं होता
तू मेरा नाम किताबों में तो नहीं लिखता
वो चाहते ही नहीं है तो छोड़ उनको विवेक
एक तरफा कोई रिश्ता कभी नहीं टिकता
तू बता कैसे मैं उस ख़त में ये तुझे लिखता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता
मैं किस तरह किसी तनहा की अब तलाश करुँ
मुझको तन्हाई में तनहा कोई नहीं दीखता
तलाशता हूँ मुद्दतो से इस हथेली पे
तू लकीरों में अगर है तो क्यूँ नहीं दीखता
तू बेवफा भी अगर है तो कोई रंज नहीं
मैं ये समझूंगा तू मेरा कभी सनम इक था
मैं सोचता हूँ वास्ता अगर नहीं होता
तू मेरा नाम किताबों में तो नहीं लिखता
वो चाहते ही नहीं है तो छोड़ उनको विवेक
एक तरफा कोई रिश्ता कभी नहीं टिकता
तू बता कैसे मैं उस ख़त में ये तुझे लिखता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता