Thursday, July 09, 2009

Mai nahi biktaa(मैं नहीं बिकता)

तू बता कैसे मैं उस ख़त में ये तुझे लिखता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता

मैं किस तरह किसी तनहा की अब तलाश करुँ
मुझको तन्हाई में तनहा कोई नहीं दीखता

तलाशता हूँ मुद्दतो से इस हथेली पे
तू लकीरों में अगर है तो क्यूँ नहीं दीखता

तू बेवफा भी अगर है तो कोई रंज नहीं
मैं ये समझूंगा तू मेरा कभी सनम इक था

मैं सोचता हूँ वास्ता अगर नहीं होता
तू मेरा नाम किताबों में तो नहीं लिखता

वो चाहते ही नहीं है तो छोड़ उनको विवेक
एक तरफा कोई रिश्ता कभी नहीं टिकता

तू बता कैसे मैं उस ख़त में ये तुझे लिखता
के चाह कर भी मैं बाज़ार में नहीं बिकता

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है  कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको  जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ    क्या ख़बर कौन से प...