देख चेहरा तू समझता क्या है
अपनी धुन पे ही लरज़ता क्या है
पैराहन देख मेरे चेहरे पे
दिल में क्या है तू समझता क्या है
प्यास है पर कोई साक़ि तो नहीं
मेरी हालत तू समझता क्या है
मेरी बातों को सुन के अक्सर तू
सर हिलाता है समझता क्या है
दिल की चोटों का तो सबब यूँ है
दिल ही नश्तर है समझता क्या है
मुझको पंछी वो ताना मार गया
ख़ुद को आज़ाद समझता क्या है
अब सफाई में क्या बताऊँ विवेक
ख़ुद का मुजरिम हूँ समझता क्या है
This page contains poetries and ghazals created by me at different times in my life.
Monday, March 30, 2009
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लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ क्या ख़बर कौन से प...
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कैसी उलझन में हूँ तेरी याद ही नहीं आती तू ख़यालों से मेरे क्यों कभी नहीं जाती प्यार कितना करूँ के दिल ही नहीं भरता मेरा अब तो उकता गया ...
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सितारों से पूछा था इक दिन किसी ने के क्यूँ आसमानों में यूँ तैरते हो सितारों ने पूछा उसे ही पलट कर ज़मीं पे हो फिर भी ये क्या घूरते हो? किस...
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ये क्या एहसास है के तू मेरे पास है यूं तो एहसास हैं अनगिनत मगर ये खास है ये क्या एहसास है ज़मीं आकाश है हवाओं में तेरी ख़ातिर कोई विश्वास है...