Saturday, February 24, 2024

लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है 
कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको 
जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ   
क्या ख़बर कौन से पल ये नज़ारा छिन जाए 

वो बिछड़ते नहीं तो आज ये दिन ना मिलता 
उनकी यादों के इस सुहाने पल को जीने का 
वो बिछड़ते नहीं तो ख़ाब में आते भी नहीं 
चलो अच्छा ही हुआ वो बिछड़ गए मुझसे 

कौन से तीर मार डाले मिल के लोगों ने 
मैं तो खुश हूँ बिछड़ के भी आज दिलबर से 
कभी तो दिल में ये आता है के बुला लूं उन्हें  
फिर ख्यालों में ही उनके मैं डूब जाता हूँ 

क्या ये होगा भी कभी वो ही चले आएंगे 
दर पे दस्तक सी करेंगे या चले जाएंगे 
जी मचलता है यही सोचकर जो आएं वो  
क्या कोई बात बची भी है उन से कहने को 

उनको शायद मेरे एहसास का पता भी नहीं 
वो जो ख़ुश हैं तो मेरा दिल ख़ुशी में डूबा है 
मैंने बरसों के बाद जाने क्यों दराज़ों से 
उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है

सुकून

वो बोलते हैं कई बार परेशां होकर 
ज़िन्दगी में कभी कभी सुकून मिलता है 
मैं सोचता हूँ कभी दिल से मेरे इस दिल को 
सुकून ना मिले तभी सुकून मिलता है 

सब यहाँ दौड़ में होड़ों में घिरे रहते हैं 
ढूंढते हैं कहाँ कहाँ सुकून मिलता है 
कोई डगर नहीं मिली न ठिकाना के जहां 
लोग कहते हों के यहाँ सुकून मिलता है 

मुतालबा सुकून का तो इस क़दर है बढ़ा 
के दस्तियादियों के नाम ख़ून मिलता है 
सुकून लफ्ज़ बचा है यही ग़नीमत है 
सुकून को भी तो कहाँ सुकून मिलता है 

मुझसे कहते हो मगर कैसा है ये तेरा शहर 
सुकून ढूंढता हुआ जूनून मिलता है 
झाँक कर देख लें ज़रा ये गरेबाँ में कभी 
कोई नहीं वहां जहाँ सुकून मिलता है 

Friday, February 23, 2024

किश मिश

ज़िन्दगी में कभी ऐसी
फिर से आतीश नहीं होती (आतिश = light)
तुझको पा ही लेते गर हम 
फिर ये ख़्वाहिश नहीं होती (ख़्वाहिश = desire)

इश्क़ में बादल बारिश की
आज़माइश नहीं होती (आज़माइश = test)
शायरी फिर भी कर लेता
ऐसी कोशिश नहीं होती 

तू अगर मेरे ख़्वाबों में 
सारी गर्दिश नहीं होती (गर्दिश = rotation, everywhere)
शेर तुझपे तो पढ़ देता 
ऐसी लर्ज़िश नहीं होती (लर्ज़िश = vibrato)

सोच अपने सफर में गर 
ऐसी बंदिश नहीं होती (बंदिश = restriction)
खीर में सब कुछ तो होता 
मगर किश मिश नहीं होती 

वो भी है

ज़र्रा ज़र्रा बोलता है 
एक है तू दो भी है 
कश-म-कश कैसी है तेरी 
मैं अगर हूँ वो भी है 

वो न होता तो ख़ुदाया 
ख़ाब कैसे देखता 
ख़ाब ये तेरे नहीं हैं 
ख़ाब तेरे जो भी हैं 

तुझमें जो मय🍷 की तरह है 
मैं😠 भी तेरा है ख़ुदा 
मय🍷 में भी मैं😮 ही बसा है 
क्या पता तुझको भी है?

दिल दिया है जाँ भी दी है 
सांस दी है आस भी 
रह गया एहसास देना 
ये गिला उसको भी है 

क्या हुआ?

मैं ख़ुद को ना हुआ तो क्या हुआ 
मैं ख़ुद को ही हुआ तो क्या हुआ 
मैं ख़ुद से हूँ जुदा तो क्या हुआ 
मैं ख़ुद ही ना हुआ तो क्या हुआ 

ये समझाना हुआ तो क्या हुआ 
जो सोचा ना हुआ तो क्या हुआ 
जो कुछ भी ना हुआ तो क्या हुआ
ना समझी से हुआ तो क्या हुआ 

मैं तेरा ना हुआ तो क्या हुआ 
तू मेरा ना हुआ तो क्या हुआ 
बस हो के जो हुआ तो क्या हुआ
जो दिल से ना हुआ तो क्या हुआ

ना मेरा हो निशाँ तो क्या हुआ 
अब मैं हूँ गुमशुदा तो क्या हुआ
क्या हुआ? 😅

हक़ीक़त

(wellness industry)

जिन समाजों में हम तुम रोज़ जिए जाते हैं 
जीने के नाम से मोहताज किये जाते हैं 
इलाज-ए-ज़िन्दगी सुन रखी थी कभी लेकिन 
यहाँ लाशों के भी इलाज किये जाते हैं 

(reality shows industry)

कहीं तफ़्री की खातिर नाज़ किये जाते हैं 
उन्हीं नाज़ों के फिर रिवाज़ किये जाते हैं 
जब किसी साज़ से बहलता नहीं दिल सबका 
बे आबरू सारे जज़्बात किये जाते हैं 

(elective politics)

हम कहाँ बेवकूफियों से बाज़ आते हैं 
रेहनुमा ढूंढते ऐसे ही चले जाते हैं 
बे-अकल मिल भी जाते हैं यूँ नवाज़िश के लिए 
बेवकूफों के ये सरताज किये जाते हैं  

Tuesday, February 20, 2024

भरोसा

अंधेरों में खड़े हो कब कदम अपने बढ़ाओगे 
तरस खाओ के कितने ज़ुल्म अब तुम खुद पे ढ़ाओगे 
अरे लोगों का क्या है कह देंगे जो जी में आएगा 
तुझे ताक़त मिली है ख़ुद की क़िस्मत ख़ुद बनाओगे 

ज़माने से डरोगे क्या कहेंगे लोग सोचोगे 
निकल जाएगा हाथों से समय तो खंबे नोचोगे 
करम तो कर ज़रा अपने भरोसा ख़ुद पे भी रख ले 
कहीं मिलती है क्या क़िस्मत कहाँ इसको ख़रीदोगे 

कहीं से रौशनी आएगी तुझको हौसला देगी 
के दिल तू थाम के रखना तुझे वो फैसला देगी 
तू ख़ाबों में रहेगा राह उसकी देखता होगा 
तेरा ये वक़्त हीरे सा भी कौड़ी में गवाओगे 

गरज़ क्या है

मोहब्बत चीज़ क्या है 
और ये करने की गरज़ क्या है 
पूछते हैं हमें जीते जी 
मरने की गरज़ क्या है?

हम उनको बोलते हैं 
बर्फ से पानी निकलता है 
अगर पानी से जीना है 
तो झरने की गरज़ क्या है?

हमें मरना तो है इक दिन 
ये सच है और मुनासिब है 
तुझे गाड़ी गुजरने पे 
ठहरने की गरज़ क्या है?

कोई बैठा है तेरे घर 
तुझे वो याद करता है 
अकेला तू वो तनहा है 
तो डरने की गरज़ क्या है?

ये चुप्पी बोलती है साफ़ 
बातें ये बराबर हैं 
मेरी बातें जो सच्ची हैं 
तो लड़ने की गरज़ क्या है?

Monday, February 19, 2024

ताहिर - Crime Tak

जुर्म कितने ही मैं बताऊँ तुम्हें 
कोई नहीं न जो बिका होगा 
कोई रिश्ते नहीं बचे ताहिर 
जुर्म जिसमें न हो सका होगा 

कौन टिकता है उम्र भर के लिए 
न वो ज़मी न वो मकां होगा 
इतना दुखता है छोड़ दे उसको 
वो भी शायद बिखर चुका होगा 

प्यार की बात भी फरेबी थी 
सबने सोचा के वो थका होगा 
उसने शरबत में तल्ख़ घोली थी 
क्या पता था के यूँ दग़ा होगा 


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ये शेर मैंने शम्स ताहिर खान जी की खिदमत में लिखे हैं |
अगर अच्छा लगे तो इल्तेजा है इसे पढ़ कर मुझे नवाज़ दें। 
ज़र्रा नवाज़ी होगी। 

चाहत

कुछ इस तरह से उन्हें चाहिए
के ज़मीं आसमां को चाहिए
प्यार की शिद्दतें भी ऐसी हों (शिद्दत = intensity)
के जुबां बे-जुबां को चाहिए

किसी तारीफ की गरज़ तो नहीं
बस के तार्रुफ़ तो इक कराइये (तार्रुफ़ = introduction)
कोई पुकारे ना पुकारे उन्हें
नाम हर इक निशां को चाहिए 

हों इशारों से यार से बातें 
गीत एक ज़ाफ़रां सा गाइये (ज़ाफ़रां = saffron, केसर)
बात समझाना इक बहाना हो 
काम हर तर्जुमां को चाहिए (तर्जुमा = work of translation)

यूं ही होती हैं बात ग़ैरों से 
प्यार से बात कम ही होती है 
जब मुसाफ़िर वो बन के मिलते हैं 
दोस्त हर हम-जुबां को चाहिए (हम-जुबां = someone who speaks the same language)

चाहिए चाहतों के अफ़साने (अफ़साना = story)
मर्ज़ लेकिन जहाँ में और भी हैं (मर्ज़ = ailment, रोग)
कोई गलियों में कहता फिरता है 
एक छत बे-मकां को चाहिए (बे-मकां = homeless)

Sunday, February 18, 2024

क़ता - लापता

सितारों से पूछा था इक दिन किसी ने 
के क्यूँ आसमानों में यूँ तैरते हो 
सितारों ने पूछा उसे ही पलट कर 
ज़मीं पे हो फिर भी ये क्या घूरते हो?

किसी से भी पूछो तमन्नाएँ दिल की (तमन्ना = desire)
किसी से भी पूछो के क्या चाहते हो 
किसी को नहीं है पता ख़ुद की ख़्वाहिश (ख़्वाहिश = will)
बताएँगे वो जो सभी चाहते हों 

ये जन्नत की हूरें ये दोज़ख़ की बातें (दोज़ख़ = hell)
किन्हें क्या मिला है किसे ये पता है
जो दो प्यार के बोल कहता हो तुमसे
उसे ही इलम है वही जानता है (इल्म = knowledge)

है तस्वीर तेरी मेरे आईने में 
ये क्या गुफ़्तगू है ये क्या माजरा है (गुफ़्तगू = conversation)
ये पूछूँ मैं तुमसे जो दे दो इजाज़त
के ऐसा मेरा तुझसे क्या राब्ता है 

भटकते हैं हम-तुम यूँ ही इस जहाँ में 
न तेरी ख़ता है न मेरी ख़ता है (ख़ता = fault)
हमें हिक़मतों का सबक़ देने वाले (हिक़मत = ज्ञान, wisdom)
न जाने किधर हैं कहाँ लापता हैं 



कोहिनूर

हुस्न तेरा ये कोहिनूरी है 
अब्र की शिद्दतें भी पूरी हैं .... (अब्र = बादल, शिद्दत  = intensity)
दिल संभाले तो कोई कैसे बता 
कुछ तो कहना तुझे ज़रूरी है 

ये चमक है तेरा सुरूर-ए-नशा  .... (सुरूर = toxic)
आँख तेरी ये चश्म-ए-नूरी है  .... (चश्म-ए-नूरी = प्रकाश सी नज़र )
देख अपनी नज़र को देख ज़रा
देख इनको ये भूरी भूरी हैं

मुस्कराहट से काम चलता है 
रुख़ पे तेरे हंसी अधूरी है (रुख़ = चेहरा)
मिलने आये हो कुछ तो बात करो 
बात करना भी तो ज़रूरी है  

कुछ भी करवा ले आज तेरा शबाब 
आज की रात भी सिन्दूरी है 
इम्तेहां लोगे कोई बात नहीं 
हाथ कंगन को कितनी दूरी है 

बात की बात भूलने वाले 
झूठ इतना भी क्या ज़रूरी है 
बक़्श दो अर्ज़ मेरे शेरों को 
मेरी ग़ज़ल अभी अधूरी है 

Friday, February 16, 2024

मुहब्बत

अमीरों के जलवे, हसीनों की शोखी 
जवानी की शान-ए-रियासत बड़ी है 
अगर मुझसे पूछो, के क्या देखते हो 
नज़र में मेरी तो नज़ाक़त बड़ी है 

है मज़बूत बाज़ू , है मॅहदूद दिल भी
               ..... (मॅहदूद = बड़ा, असीम)

ये माना के तेरी ये ताक़त बड़ी है
नहीं चाहिए और कुछ दोस्ती में
मेरे दोस्त बस तेरी सोहबत बड़ी है 

हो तिफ्लों का बढ़ना, या पौधों का बचना
                          ..... (तिफ्ल = बच्चे)
सभी को पता है के मेहनत बड़ी है
मगर फल मिले तो हो सीना बराबर
अगर ना मिले तब तो ज़ेहमत बड़ी है 
                        ..... (ज़ेहमत = कष्ट)

मनाही अगर हो किसी बात की तो
वही बात करने में राहत बड़ी है
इबादत बड़ी या ज़ियारत बड़ी है
        ..... (इबादत = पूजा, ज़ियारत = तीर्थ स्थल )
मेरी बात मानो मुहब्बत बड़ी है


Thursday, February 15, 2024

आदत

दिल की ये धड़कन इबादत सी है 
और तेरी मुरादें इनायत सी है 
ज़िंदा तो वैसे भी रह लेते हम 
पर दिल को धड़कने की आदत सी है 

बातें करूँ दिन की रातें करूँ 
मेरा बस चले तो मैं क्या न करूँ 
लगता है कोई विरासत सी है 
यूँ के दिल को धड़कने की आदत सी है 

मुझे महफिलों की तो ख्वाहिश नहीं 
महफिलों के ख़ुदा की नवाज़िश नहीं 
तू जो नहीं तो हरारत सी है 
मेरे दिल को धड़कने की आदत सी है 

तू नहीं कुछ नहीं ऐसा भी तो नहीं 
आज तू न सही तेरी यादें सही 
दिल में मेरे तू हिफाज़त सी है 
इस दिल को धड़कने की आदत सी है 

देख बेचैनी है शाम से ही मुझे 
एक पैग़ाम भेजा है मैंने तुझे 
दिल में कसक सी शरारत सी है 
यूँ ही दिल को धड़कने की आदत सी है 

Wednesday, February 14, 2024

तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए

इस तरह फ़ासलों से अकेले हुए 
क्या पता रात के कब अंधेरे हुए 
याद आते हैं तेरे वो वादे किये 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

इन दिनों बारिशों का ज़माना नहीं 
कब बरस जाएँ लेकिन ठिकाना नहीं 
ग़म के बादल दिहाड़े घनेरे हुए 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

कैसा मासूम था किसको मालूम था 
उन लिफाफों में कैसा वो मजमून था 
बस बताने की ख़ातिर बसेरे हुए 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

हमसे मिलने लगे तुम तो खिलने लगे 
बात ही बात में हमसे खुलने लगे 
क्या बताएं के कैसे लुटेरे हुए 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

हाँ रहा मैं तेरे आसतीनों में भी 
ग़म के दिन और सालों महीनों में भी 
सांप गर मैं हुआ तुम संपेरे हुए 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

फिर कहानी वही और रवानी वही 
तुझसे रुसवाइयों से वीरानी वही 
जाने कितने ही जन्मों के फेरे हुए 
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

क्या सुनें ना सुनें और कहें ना कहें 
और कितने बहाने तेरे हम सहें 
अब तो ख़ामोशियाँ ही हैं घेरे हुए  
तुम तो मेरे ही थे पर न मेरे हुए 

कुछ सही कुछ नहीं !!

देखता हूँ, आंकता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
तुम ये रंगत कहाँ तक ही ले जाओगे?

बेचता हूँ, ठैरता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
अपनी शोहरत को कब तक यूँ सेहलाओगे?

तोलता हूँ, मोलता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
अपनी दौलत से खुद को क्या नेहलाओगे?

ताकता हूँ, घूरता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
अपनी हरकत से तुम बाज़ कब आओगे?

रेख़्ता हूँ, फेकता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
मेरी मोहलत से कब तक यूँ घबराओगे?

कोसता हूँ, रोकता हूँ, बोलता हूँ 
कुछ सही कुछ नहीं 
अपनी सूरत से कब तक यूँ शर्माओगे?

सेंधता हूँ, खोलता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं 
ऐसी लानत से बचकर कहाँ जाओगे?

तानता हूँ, ओढ़ता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं 
ऐसी फुर्सत के पल तुम कहाँ पाओगे?

मांजता हूँ, रेतता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं 
क्या वो जन्नत उठाकर यहाँ लाओगे?

छीनता हूँ, लूटता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं 
अब ये बरकत के गाने कहाँ गाओगे?

बेलता हूँ, सेकता हूँ, बोलता हूँ
कुछ सही कुछ नहीं 
इसकी क़ीमत मुझे तुम क्या दिलवाओगे?

Tuesday, February 13, 2024

मिलेंगे

बोहत शोर है यहाँ, कहाँ सन्नाटे मिलेंगे 
फूलों की ख़ाहिशों में, यहाँ कांटे मिलेंगे 

रुलाते मिलेंगे, मुस्कुराते मिलेंगे 
तुझे नींद के मसीहा भी जगाते मिलेंगे 

दावों की क़तारों में, तुझे घाटे मिलेंगे 
हटाते मिलेंगे, तुझे भुलाते मिलेंगे 

तू टूट जाए ऐसे, तुझे दावे मिलेंगे 
हमदर्द तेरे हँसते, और हंसाते मिलेंगे 

ये दुनिया है भई दुनिया, यहाँ सारे मिलेंगे 
कुछ आते मिलेंगे, तो कुछ जाते मिलेंगे 

ए दोस्त, चल कभी तो तुझसे, आके मिलेंगे 
घडी के कांटे मिलेंगे, हम मिलाते मिलेंगे 

मौसम

लो आ गया, लो आ गया मौसम 
प्यार की तरह छा गया मौसम 
कितने अर्से से बाट देखी थी 
दिल में ठंडक दिला गया मौसम 

बात बनती न थी न आने से 
बात बनती न थी न जाने से 
आने जाने की उलझनों में ही 
घाव कितने भुला गया मौसम 

लो आ गया लो आ गया मौसम 
बाग़ बिखरे खिला गया मौसम 
फूल की खुशबुएँ बिखेर यहाँ 
दिल की धड़कन बढ़ा गया मौसम 

जब न आया था याद आती थी 
कितने मंसूबे ये बनाती थी 
ये है मेहमान कुछ महीनों का 
फिर कोई आएगा नया मौसम 

लो आ गया लो आ गया मौसम 
याद किसकी दिला गया मौसम 
आँख से आंसुओं ने बारिश की 
हँसके आया, रुला गया मौसम 

Monday, February 12, 2024

वस्ल

मेरे नसीब ने यूँ क़र्ज़ मिलाये होंगे 
मौसम-ए-वस्ल तभी वक़्त पे आये होंगे
             ...... (मौसम-ए-वस्ल = जुदाई का मौसम)
मैं तो अब भूल चुका भूल चुका हूँ शायद 
तेरे एहसास ने ये दर्द संभाले होंगे 

तेरी यादों में मैंने आसमाँ से बातें की 
तेरे तो दिन थे मगर अपनी मैंने रातें की
देख गिन रखे हैं फलक पे बता देता हूँ
रात से सुबह तलक कितने सितारे होंगे 

इक दफा झूठ ही कह देते कि मैं ग़ैर नहीं 
प्यार अब भी है तुझे मुझसे कोई बैर नहीं 
किया हलाल सर-ए-आम किसी के दिल को 
तू बता दे के ऐसे कितने नज़ारे होंगे 


शराब

मैं तो पीता हूँ आब जीने को
और जीता शराब पीने को
बोतलें जब मुझे पी लेती हैं
शक्ल देता हूँ मैं नगीने को 

भीड़ इतनी भी ना करो मिलकर 
सांस थोड़ी मुझे भी, जीने को

जब तलक मौत ख़ुद नहीं आती 
किसने देखा है ख़ुद सक़ीने को ...... (सक़ीना = शांति)

वो तो कहता है तू ज़हीन कहाँ ...... (ज़हीन = प्रतिभावान)
कोई समझाए इस कमीने को 😁

मैं तो पीता हूँ आब जीने को
और जीता शराब पीने को
बोतलें जब मुझे पी लेती हैं
शक्ल देता हूँ मैं नगीने को 

Sunday, February 11, 2024

ख़याल मेरे

कहीं तो ले चलो ख़याल मेरे 
कोई न ले जहां बयान मेरे 
ऐसा भी तो कोई मंज़र हो 
जवाब उनके हों सवाल मेरे 

किन चराग़ों की बात करते हो 
ये नहीं ये नहीं मक़ान मेरे 

सुर्ख़ कलियों ने हमसे ये पूछा ....... (सुर्ख़ = लाल)
कैसे लगते हैं ये जमाल मेरे ....... (जमाल = सुंदरता)

वो ज़माने भी याद आते हैं 
रुख़ पे रखते थे वो गुलाब मेरे 

लूट कर कैद कर लिया इन ने ....... (इन ने = इन्होंने)
नैन लगते हैं ये इजाज़ तेरे ....... (इजाज़ = चमत्कार)

ये न पूछो कि मेरे क्या तुम हो 
ज़िन्दगी हो मेरे जहान मेरे 

ऐसा भी तो कोई मंज़र हो 
जवाब उनके हों सवाल मेरे 

कहीं तो ले चलो ख़याल मेरे 
कोई न ले जहां बयान मेरे 
ऐसा भी तो कोई मंज़र हो 
जवाब उनके हों सवाल मेरे 

हमने न जाना तुमने न जाना

दिल धड़कन का क्या है फ़साना 
हमने न जाना तुमने न जाना 
सुनता हूँ ये रोग पुराना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

दिल पर बोझ पड़ा था कब से 
कितनी ख़ुशी पाई है सबसे 
बाँटा जब ये ग़म का ख़ज़ाना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

ख़ुश्बू सी आने लगती है 
जब दिलबर की बातें हों 
बिन बातों के भी शर्माना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

दिल की क़शिश कुछ लिखवाती है 
ग़ुमग़श्ती के आलम में 
लिख कर कुछ फिर से वो मिटाना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

जिनसे कभी दिल जुड़ता नहीं था 
आज वो दिल की धड़कन हैं 
दिल से तल्ख़ी का गुम जाना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

इतना क्यों मुश्किल होता है 
सोचता रहता हूँ अक्सर मैं 
सब को सबकुछ ही मिल पाना
हमने न जाना तुमने न जाना 

पहले तो दिल की छिडकन थी 
दोस्त थे पहले दो हमराही 
रिश्तों का ऐसे खिंच जाना 
हमने न जाना तुमने न जाना 

वक़्त है ये फिर भर जाएगा
दिल के ज़ख्मों को ख़ुद से
ऐसा ही कहता है ज़माना
हमने न जाना तुमने न जाना 


========= Rythm Reference ==========

Dum Dum Dum Dum Dum de da Dum Dum
Dum de da Dum Dum Dum de da Dum Dum 

Thursday, February 08, 2024

कहते हैं

अब कोई फ़िक्र नहीं है
          के वो क्या कहते हैं
भला वो कहते भी हैं या
          वो बुरा कहते हैं 

वो कहें कुछ भी मगर
          ये बात तो लाज़िम है 
लोग अक्सर ही
          कुछ भी सोचे बिना कहते हैं  

दाग़ अच्छे हैं अगर
          हो किन्हीं ज़ख्मों के
तेरे इस वादा खिलाफ़ी को
          दग़ा कहते हैं ... लोग अक्सर ही 

कड़ी सी धूप में
          जल जाते हैं जब जिस्म-ओ-हया 
दरख़्त कोई भी हो
          उसको पनाह कहते हैं ... लोग अक्सर ही 

कौन आता है यहाँ सुनने 
          मेरे शेर-ओ-ग़ज़ल 
लोग अपनी सी लगी बात पे
          वाह कहते हैं ... 

लोग अक्सर ही
          कुछ भी सोचे बिना कहते हैं  


======= Rythm Reference =======

de de Dum, Dum, de de Dum Dum
de de Dum, Dum Dum Dum
de Dum, de, de de de, Dum, da Dum
de de Dum, de de Dum, Dum

de de Dum, Dum de de Dum
Dum de da Dum da de
Dum de, Dum Dum de, 
Dum de, Dum da da Dum
, de de Dum, Dum


Wednesday, February 07, 2024

सितारों का मारा

दुनिया है देखी सारी 
और जग भी देखा सारा 
मैं भी सितारों का मारा 
तू भी सितारों का मारा 

किसी ने घांस खा ली 
किसी ने खाया चारा
मैं भी सितारों का मारा
तू भी सितारों का मारा 

लेटा पड़ा था छत पे
देखा गगन में तारा
मैं भी सितारों का मारा
तू भी सितारों का मारा 

हारा हुआ भी जीता
जीता हुआ भी हारा
मैं भी सितारों का मारा
तू भी सितारों का मारा 

अपना तो आजकल है
बस ये ही एक नारा 
मैं भी सितारों का मारा
तू भी सितारों का मारा 

कहानी

इक कहानी थी 
इक फ़साना था 
कुछ हक़ीक़त थी 
कुछ निभाना था 

हाथों से खत लिखते थे तब 
वो भी क्या ज़माना था 
दूर कहीं यादों की गली में 
कोई तेरा दीवाना था 

नदी किनारे बैठ के तुमको 
नग़मा ये सुनाना था 
धड़कन ये थमती ही नहीं है 
आँखों से ये बताना था 

एक छतरी थी वो भी टूटी 
उसका तो बस बहाना था 
मुझको सावन की बारिश में 
तेरे संग नहाना था 

प्यार का वादा करते थे तुम 
देर से मिलने आना था 
देर से आकर जल्दी जाना 
ऐसे मुझको सताना था 

इक कहानी थी 
इक फ़साना था 
कुछ हक़ीक़त थी 
कुछ निभाना था 

Tuesday, February 06, 2024

उलझन

तेरी रुसवाई में बेखुद को मनाते देखा 
और दुनिया को परेशान-सताते देखा 

मैंने नाहक़ ही बेदार सी बातें कहकर 
खुद को उलझन ही उलझन में फ़ँसाते देखा 


ख़ुद-ब-ख़ुद, कुछ तो गिरा, हो-न-हो, तुम आओगे 
ये वहम है तो मगर, ख़ुद को बताते देखा ... खुद को उलझन ... 

अब निखर जाएंगे दिन, बात भी बन जायेगी 
क़ाफ़िरों में हूँ मगर, हाथ उठाके देखा ... खुद को उलझन ... 

नींद आ जाएगी ख़ाबों में वो ही आएंगे 
ख़ाब में ख़ुद को यूं ही रात बिताते देखा ... खुद को उलझन ...

तेरा सबब जो छिड़ा, चाँद मैं दिखाने लगा
मेरे यारों ने मुझे बात बनाते देखा ... खुद को उलझन ...  

ये राज़ है, के मरते हो, मुझपे बे-इंतेहा 
इस लतीफे से तुझे सबको हंसाते देखा ... खुद को उलझन ... 

तेरी रुसवाई में बेखुद को मनाते देखा 
और दुनिया को परेशान-सताते देखा 

Monday, February 05, 2024

तिश्नगी

तेरे यादों की चादरें घेरी 
आँख धुंधली सी हो गई मेरी 
दिल सराबों में आब ढूंढे है 
तिश्नगी मिट नहीं रही मेरी 

ये अक्ल है के भूलना चाहे 
दिल की धड़कन में हो रही देरी
आ गया फिर से प्यार का मौसम
छिल गए घाव पक गई बेरी 

तेरे रस्ते की ताक में शायद 
आँख पत्थर की हो गई मेरी
तुम ही तुम हो सांस में अब तो
सांस लेकिन न आ रही मेरी 

तेरे यादों की चादरें घेरी 
आँख धुंधली सी हो गई मेरी
दिल सराबों में आब ढूंढे है
तिश्नगी मिट नहीं रही मेरी 


लिफ़ाफ़े ( एक नज़्म )

उनकी यादों के लिफ़ाफ़े को आज खोला है  कितनी प्यारी सी ये तस्वीर मिली है मुझको  जी में आता है के सारे वो लम्हे फिर से जिऊँ    क्या ख़बर कौन से प...